जापान ने रचा इतिहास: बना दुनिया का पहला कृत्रिम गर्भ, अब बिना मां के भी जन्म संभव।

जापान ने रचा इतिहास: बना दुनिया का पहला कृत्रिम गर्भ, अब बिना मां के भी जन्म संभव।

जापान का कृत्रिम गर्भ (Artificial Womb): मानवता की नई दिशा

परिचय: जून 2025 में जापान के जुंटेंडो विश्वविद्यालय (Juntendo University) की अनुसंधान टीम ने एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया – उन्होंने दुनिया का पहला पूर्णतः कार्यात्मक कृत्रिम गर्भ विकसित किया, जो बकरियों के भ्रूण (goat embryos) को प्राकृतिक गर्भाशय की परिस्थितियों में जीवित रख सकता है। इस तकनीक ने जन्म की प्रक्रिया को एक नई तकनीकी सीमा पर खींच दिया है—यह केवल जीवन बचाने वाली मशीन नहीं, बल्कि जीवन शुरु करने वाली मशीन है।

१. तकनीकी विस्तार और कार्यप्रणाली

यह प्रणाली कुशल परीक्षण और डिज़ाइन पर आधारित है:

  • पारदर्शी बायो-बैग: भ्रूण को अम्नियोटिक द्रव (amniotic fluid) से भरे चैंबर में रखा जाता है।
  • तापमान और द्रव संतुलन: प्राकृतिक गर्भ की तरह तापमान नियंत्रित रखा जाता है। इस वातावरण में रक्त-नाल के माध्यम से ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का आदान-प्रदान होता है 3।
  • सेंसर एवं AI नियंत्रण: दिल की धड़कन, भ्रूण की गतिविधि, रासायनिक संतुलन आदि पर वास्तविक समय निगरानी हेतु सेंसर और सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल होता है।

२. यह क्यों है महत्वपूर्ण?

  1. पूर्वकालिक बचाव (Premature Support): अत्यंत समय पूर्व जन्मे बच्चों के लिए इस तकनीक से जीवन बचाना और उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ कम करना संभव है।
  2. अनार्वरता में मदद: गर्भवती न हो सकने वाली महिलाओं को विकल्प देने में यह मददगार हो सकता है, खासकर कैंसर या विकृति जैसी शारीरिक बाधाओं से प्रभावित महिलाओं के लिए।
  3. लिंग-निर्भरता कम करना: एकसाथ या समलैंगिक जोड़ों के लिए प्राकृतिक गर्भावस्था के बिना जैविक बच्चों की संभावनाएं खुलती हैं।
  4. जनसंख्या नियमन: जापान में जन्म दर गिर रही है—ऐसे में इस तकनीक से समाज और अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की संभावना है।

३. क्या हम मनुष्यों पर जल्द प्रयोग देखेंगे?

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि:

  • 10–15 वर्षों में partial ectogenesis यानी अत्यधिक अप्रिमैच्योर मानव शिशुओं के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
  • पूर्ण fertilization से लेकर जन्म तक की प्रक्रिया अभी दूर है और इसके लिए कड़े नैतिक, वैज्ञानिक और कानूनी मंत्री बनाना जरूरी है।

४. विश्व पटल पर तकनीकी प्रवृत्तियाँ

2017 में, फिलाडेल्फिया के बच्चों के अस्पताल में BioBag के माध्यम से एक समयपूर्व बकरा भ्रूण कुछ सप्ताह तक समर्थित था।

इसके पहले, 1989 में जुंटेंडो विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में भी कृत्रिम वातावरण में बकरी भ्रूण को कुछ दिनों तक जीवन में बनाए रखने का प्रयास किया गया था। इसके अलावा, लॉन्डन के Cambridge University Press के शोध में इस तकनीक के नैतिक, सामाजिक, कानूनी पहलुओं का गहराई से विश्लेषण है।

५. नैतिक और सामाजिक प्रश्न

  • पैरेंटहुड की पुनर्परिभाषा: क्या बाहरी वातावरण में जन्म लेने वाले बच्चे की माँ-पिता से भावनात्मक और कानूनी पहचान बदल जाएगी?
  • समान अधिकार: क्या केवल अमीर लोग ही इस तकनीक की पहुँच में होंगे—इससे स्वास्थ्य असमानता बढ़ सकती है?
  • सम्मति (Consent) और ज़िम्मेदारी: भ्रूण की अनुमति कौन देगा, और कोई त्रुटि हुई तो जवाबदेही कैसे तय होगी?
  • हैकर जोखिम: यदि सिस्टम हैक हो जाए या फेल हो जाए, तो भूषण की रक्षा कौन करेगा?
  • नियामक ढांचा: भारत सहित अन्य देशों में इसे लागू करने के लिए स्पष्ट सरकारी और कानूनी दिशा-निर्देश बनाना अनिवार्य है।

६. भारत में यह किस रूप में उपयोगी?

भारत में जन्म-दर कम हो रही है और प्रीमैच्योरिटी का स्तर बना हुआ है। यह तकनीक कुछ ऐसे मामलों में मदद कर सकती है:

  • समय पूर्व जन्मे शिशुओं की देखभाल
  • जिन महिलाओं का गर्भाशय प्रभावित हुआ है, उनके लिए विकल्प
  • शहरी कामकाजी महिलाओं के जीवन और कैरियर के संतुलन में सहूलियत

७. आगे की राह – चुनौतियाँ और भविष्य

  • एथिकल फ्रेमवर्क: मानव भ्रूण पर प्रयोग से पहले विश्वस्तरीय नैतिक दिशानिर्देश जरूरी।
  • वैज्ञानिक सुधार: पूर्ण ectogenesis के लिए रक्तप्रवाह का नियंत्रण, संक्रमण सुरक्षा, पोषक अनुपात आदि में सुधार।
  • आर्थिक उपयुक्तता: प्रयोगशील उपकरण और प्रक्रियाएँ किफ़ायती और उपलब्ध बनानी होंगी।
  • कानूनी न्याय: व्यक्तिगत अधिकार, भ्रूण की स्थिति, लैंगिक स्वतंत्रता और सुरक्षा सभी पहलुओं का नियंत्रण।
  • सामाजिक स्वीकार्यता: हमें कर्मकांड, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आदर्शों को भी ध्यान में रखना होगा।

८. निष्कर्ष

जापानी कृत्रिम गर्भ तकनीक ने सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं पाई है, बल्कि मानव जीवन की शुरुआत और उत्पत्ति की परिभाषा को दुबारा लिखने की प्रक्रिया शुरू की है। यह एक मेडिकल, सामाजिक, कानूनी और नैतिक क्रांति की दस्तक है।

हालांकि फायदे स्पष्ट नज़र आते हैं, जैसे प्रीमैच्योरिटी रुकथाम, गर्भवती नहीं हो सकने वाले लोगों को विकल्प, और समलैंगिक/एकल माता–पिता को सहयोग—लेकिन इसके साथ नए सवाल, उलझनें और चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं।

इसलिए जब अगली बार हम “जीवन की शुरुआत” की बात करें, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विज्ञान को जब मानवता के प्रति जिम्मेदारी से जोड़ा जाए, तभी यह सच्चाई में मानव हित के अनुकूल बनता है।

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