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नॉर्वे : विश्व का पहला वायरलेस चार्जिंग रोड, EV की दुनिया की क्रांतिकारी आविष्कार।

नॉर्वे की क्रांतिकारी EV चार्जिंग रोड: वायरलेस भविष्य की ओर बढ़ता विश्व

आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और पेट्रोल-डीज़ल पर निर्भरता से जूझ रही है। ऐसे समय में नॉर्वे ने एक नई तकनीक के ज़रिए सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। यह तकनीक है — वायरलेस EV चार्जिंग रोड। इस क्रांतिकारी पहल से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की दुनिया में एक नई दिशा खुल गई है। यह तकनीक न केवल स्मार्ट है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है।

वायरलेस EV चार्जिंग रोड: क्या है यह तकनीक?

यह रोड एक विशेष प्रकार की स्मार्ट सड़क है जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्वाइल्स बिछाई जाती हैं। जब कोई EV इस सड़क पर चलता है, तो नीचे लगी क्वाइल्स इंडक्टिव चार्जिंग के ज़रिए वाहन की बैटरी को बिना किसी केबल या वायर के चार्ज करती हैं।

इस प्रक्रिया को Dynamic Wireless Charging कहा जाता है। यह तकनीक स्मार्ट चार्जिंग, गति अनुसार ऊर्जा आपूर्ति और ट्रैफिक-सेंसिटिव सिस्टम से लैस होती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वाहन को पर्याप्त ऊर्जा मिले बिना उसे रुकना न पड़े।

नॉर्वे क्यों बना इसका पहला प्रयोगकर्ता?

नॉर्वे विश्व का एक ऐसा देश है जो पर्यावरणीय संरक्षण को लेकर सबसे अधिक जागरूक और सक्रिय है। 2024 तक वहां 90% से अधिक नए वाहन इलेक्ट्रिक हो चुके थे। नॉर्वे सरकार ने EVs को बढ़ावा देने के लिए टैक्स छूट, टोल फ्री यात्रा और विशेष पार्किंग जैसी सुविधाएं दी हैं।

यह EV-फ्रेंडली नीति ही थी जिसने नॉर्वे को दुनिया का पहला देश बना दिया जिसने यह अत्याधुनिक तकनीक अपने नागरिकों को देने का बीड़ा उठाया।

यह तकनीक कैसे काम करती है?

वायरलेस चार्जिंग रोड में सड़क के नीचे लगी हाई-फ्रिक्वेंसी इंडक्टिव क्वाइल्स होती हैं, जो रेडियो वेव्स की मदद से ऊर्जा संचारित करती हैं। जैसे ही EV वाहन उनके ऊपर चलता है, यह ऊर्जा ट्रांसफर होती है और वाहन की बैटरी चार्ज होने लगती है।

मुख्य रूप से इसमें तीन प्रमुख घटक होते हैं:

  1. ग्राउंड कोइल्स: जो सड़क के नीचे लगी होती हैं।
  2. रिसीवर कोइल्स: EV में इंस्टॉल की जाती हैं।
  3. पावर कन्वर्टर: जो ऊर्जा को उपयुक्त वोल्टेज में परिवर्तित करता है।

EV चार्जिंग रोड के लाभ

प्रोजेक्ट का पहला चरण: टैक्सी ड्राइवरों के लिए सुविधा

नॉर्वे सरकार ने शुरुआत टैक्सी वाहनों से की है। यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि टैक्सियाँ दिन भर शहर में चलती रहती हैं और उन्हें लगातार चार्जिंग की आवश्यकता होती है। इस तकनीक से टैक्सी ड्राइवरों को बार-बार चार्जिंग स्टेशन पर रुकने की ज़रूरत नहीं होगी।

यह सुविधा ट्रॉनहैम और ओस्लो जैसे प्रमुख शहरों में पहले शुरू की गई है, जहां यातायात अधिक है और EV टैक्सी सेवा का अधिक उपयोग होता है।

क्या यह तकनीक सुरक्षित है?

जी हां। यह वायरलेस चार्जिंग तकनीक पूरी तरह से मानवीय स्वास्थ्य और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के लिए सुरक्षित है। यह निम्न आवृत्ति पर कार्य करती है और किसी भी जीव या इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को नुकसान नहीं पहुंचाती।

इसके अलावा सड़क पर सटीक मार्किंग और ऑटोमैटिक पावर कंट्रोल सिस्टम इसे और भी सुरक्षित बनाते हैं।

अन्य देशों में संभावनाएं

नॉर्वे की यह पहल अब दुनिया के अन्य देशों के लिए प्रेरणा बन गई है। अमेरिका, जर्मनी, नीदरलैंड्स, दक्षिण कोरिया और चीन भी इस तकनीक पर रिसर्च कर रहे हैं। यदि इन देशों में भी यह लागू होती है, तो EV क्रांति और भी तेज़ हो सकती है।

भारत में विशेष रूप से यह तकनीक अत्यधिक लाभकारी हो सकती है। मेट्रो शहरों में ट्रैफिक जाम और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को देखते हुए यह समाधान बेहद प्रभावी साबित हो सकता है।

भारत के लिए चुनौती और संभावना

भारत में EV नीति को समर्थन मिल रहा है, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर विकास धीमा है। यदि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर वायरलेस चार्जिंग रोड्स पर निवेश करें, तो भारत भी स्मार्ट और टिकाऊ ट्रांसपोर्ट का नेतृत्व कर सकता है।

कुछ आवश्यक कदम:

भविष्य की कल्पना: हर सड़क एक चार्जिंग स्टेशन

कल्पना कीजिए कि हर राजमार्ग, हर शहर की सड़क, और हर ग्रामीण मार्ग EV चार्जिंग सक्षम हो जाए। न ही किसी को चार्जिंग स्टेशन ढूंढना होगा, न ही रुकना पड़ेगा। बैटरी डाउन की कोई चिंता नहीं, और पर्यावरण पर शून्य प्रभाव — यही है EV का भविष्य, और यह शुरुआत है नॉर्वे से।

निष्कर्ष

नॉर्वे की वायरलेस EV चार्जिंग रोड एक क्रांतिकारी पहल है जो हमें बताती है कि भविष्य की सड़कें कैसी होंगी। यह तकनीक केवल एक नया आविष्कार नहीं, बल्कि एक विचार है — स्मार्ट, हरित और सतत भविष्य की ओर।

यदि दुनिया के देश इस सोच को अपनाते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब हर सड़क एक चार्जिंग स्टेशन होगी और हर वाहन प्रदूषण मुक्त।


~: धन्यवाद :~

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